Wednesday, January 18, 2012

दोस्ती

मानव एक  सामाजिक प्राणी है और सामाजिक होने का अर्थ है किसी समाज का हिस्सा होना. हर व्यक्ति की एक अलग society होती है  जो  उसके  अपने relationship पर depend करती है .इसलिए मानव के लिए संबंधों का बहुत अधिक महत्व है जिसके सहारे वो अपना सारा जीवन व्यतीत करता है. . मानव दो तरह के संबंधों से जुड़ा है पहले वो जो जन्म से ही उसके साथ होते हैं और दूसरे वो जिसे वो अपनी ख़ुशी या पसंद से बनाता है. 
आप के माता-पिता या रिश्तेदार कौन होंगे,आपके स्कूल के principal कौन होंगे, boss कौन होंगे, colleagues कौन होंगे या पड़ोसी कौन होंगे ये आप decide नहीं कर सकते. हाँ ! एक ऐसा सम्बन्ध ज़रूर है जिसे  आप अपनी इच्छा से चुनते और जोड़ते हैं और वो है 'दोस्ती'. दोस्त हम कई लोगों में से कुछ लोगों को ही बनाते हैं l
कुछ लोग शायद ये नहीं जानते कि भले ही friendship  एक secondary relationship है पर फिर भी वो life की सबसे important relationship है. इस relation का अगर थोड़ा सा भी हिस्सा किसी और relation  में मिला दिया जाये तो उस रिश्ते का रूप ही बदल जाता है ."My mom is my best friend", "My life partner is my best friend" ये कहते हुए  भी अच्छा लगता है और सुनते हुए भी .किसी बच्चे को अपने  माता -पिता,किसी student को अपना teacher, किसी employee को अपना  boss या किसी व्यक्ति को अपना life-partner तभी अच्छा लगता है
जब उनमें एक अच्छा दोस्त दिखाई देता है. तो बिना किसी संदेह के दोस्ती एक ऐसा relation है जिसे हम जाने-अनजाने बाकी सभी Relations में खोजने कि कोशिश करते हैं.

दोस्त अक्सर समानता, समीपता ,frequent  interaction या common goals के कारण बन जाते हैं . जिन लोगों को हम अपने समान या अपने आस-पास आसानी से उपलब्ध पाते हैं उनसे हम दोस्ती कर लेते हैं . ये relation किसी जाति को , धर्म को या किसी उम्र को नहीं  मानता l यही अकेला एक ऐसा रिश्ता है जो human relation को show करता है क्योंकि बाकी सभी संबंधों को हम इसलिए निभाते हैं क्यों कि वो हमारे साथ पहले से ही जुड़े हुए हैं या हमारे पास उन्हें निभाने के आलावा कोई option  नहीं होता. 
 
किसी relation को अगर आप कोई नाम नहीं दे सकें तो उसे दोस्ती का नाम आसानी से दिए जा सकता है. ये give and take के rule को  follow नहीं करता , हाँ अगर ऐसी किसी relation  में ऐसा कोई
rule  हैं तो आपको दोस्ती का  सिर्फ एक भ्रम है .

आज के competitive world में अक्सर लोगों को अपने परिवार से दूर जाना पड़ता है पर आपने कभी ध्यान से सोचा है कि उस अकेलेपन के लम्बे समय को रोमांचक बनाकर आसानी से काटने में आपकी मदद कौन करता है ; कोई और नहीं बस आपके दोस्त !  इसमें किसी formality  या किसी discipline कि मांग नहीं होती .अपने दोस्तों से  अपने दिल कि बात कहने के लिए आपको किसी खास समय का इंतज़ार नहीं करना पड़ता .आप ये नहीं सोचते कि आपके दोस्त क्या   सोचेंगे . और अगर क्षण भर के लिए ये विचार आपके मन में आता भी है तो आप कहते है 'तो क्या हुआ दोस्त ही तो है ज़रूर समझ जायेगा!!! '.

कहते हैं दुनियां में मंहगी से महंगी जगह घर बनाना फिर भी आसान है पर किसी के दिल में सच्ची जगह बनाना बहुत ही मुश्किल है . इसलिए सच्चा दोस्त मिलना उतना आसन भी नहीं होता . अगर सोचें तो दोस्त हमारे सबसे अच्छे teachers  होते हैं क्योंकि वो हमें अपने आप से इमानदार होना सिखाते हैं हमें उनके सामने कोई ideal  role play करने कि ज़रुरत नहीं होती है जिन लोगों के जीवन में दोस्तों कि  कमी होती है वो depression के शिकार भी जल्दी होते हैं . एक अच्छा दोस्त आपकी व्यक्तित्व को भी निखारता है .

ये Relation जितना पुराना होता है उतना ही गहरा होता जाता है. लेकिन कई बार हम सच्चे दोस्त और सिर्फ दोस्त में अंतर नहीं कर पाते. अगर आप हजारों से मिलते हैं तो वो सारे आपके अच्छे दोस्त या शुभचिंतक नहीं हो सकते .अच्छे दोस्त आपको कभी misguide नहीं करते और मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं . हाँ अगर आप ग़लत हैं तो आप का विरोध भी करते हैं लेकिन जीवन के किसी भी मोड़ पर आप पलट के देखें तो वो हमेशा आप के लिए खड़े होंगे .

सोचिये कि उस व्यक्ति का जीवन भी क्या जीवन है जिसके कई रिश्तेदार तो हैं पर कोई दोस्त नहीं है .आप अपनी हर छोटी - बड़ी बात उस व्यक्ति से share  करते हैं जिसे आप अपना सबसे अच्छा दोस्त समझते हैं फिर चाहे वो आपके parents  हों ,आप का life-partner  हो या कोई अन्य . दोस्ती का कोई भी रूप हो सकता है .

एक बात ज़रूर याद रखिये कि इस प्यारे से unconditional रिश्ते को भी attention  कि उतनी ही ज़रुरत होती है जितनी कि किसी औररिश्ते को, इसे लम्बे समय तक चलाने के लिए empathy और प्यार कि भावना से सींचना पड़ता है. तो अगर किसी भी रिश्ते में मिठास लानी  है तो उसमें दोस्ती कि थोड़ी से चाश्नी तो डालनी ही पड़ेगी !


मशहूर शायर नासिर जी ने क्या खूब कहा है :-

"आज मुश्किल था संभलना ए दोस्त,
तू मुसीबत में अजब याद आया ,
वो तेरी याद थी ; अब याद आया"

Tuesday, January 17, 2012

Colour Wheel

ColourWheel

हर रंग कुछ कहता है.

जितनी खूबसूरत हमारी यह रंगीन दुनिया हैउतनी ही विलक्षण इन रंगो की दुनिया है.बचपन मॅ हमॅ सिर्फ उन सात रंगॉ के नाम सिखाये जाते है जो हम इन्द्रधनुष मॅ देख सकते है.परंतु,सच तो यह है कि हम रंगो को किसी संख्या या गणना मॅ सीमित नहीं कर सकते.रंगो कि कोइ गिनती नही होती क्योकि इस दुनिया मॅ असंख्य रंग है.इसका कारण यह है कि किन्ही भी दो रंगो को मिला कर हम एक तीसरा रंग बना सकते है,और उन दो रंगॉ की मात्रा मॅ फेर-बदल कर के हम अनेक रंग बना सकते है.इस तरह हम अलग-अलग combinations से असंख्य रंग बना सकते है.
इसी बात को हम थोडा विस्तार मॅ देखते है.रंगो को हम मूलतः तीन वर्गो मॅ बाँट सकते है. ये है - Primary,Secondary, और Tertiary Colours

(1) Primary Colours:- Primary colours वे रंग है जिन्हॅ हम दूसरे रंगो की मदद से नही बना सकते है. ये रंग है - लाल,पीला,और नीला .ये तीन रंग बेस या foundationरंग है जोकि किसी भी रंग को मिला कर नहीं बनाये जा सकते है. परंतु,इन तीन रंगो के माध्यम से हम नाना प्रकार के रंग बना सकते है.
ये primary colours यानि कि लाल,पीले,और नीले रंग एक साथ इस्तेमाल करने पर विविध और आकर्षक लगते है .ये रंग तीव्रता,रफ्तार,और आपातकाल यानि किemergency को सूचित करते है.
(2)Secondary Colours:-किसी भी दो primary colours को समान मात्रा मॅ मिलाने से जो नया तीसरा रंग बनता है उसे secondary colour कहते है.तीन primary coloursको समान मात्रा मॅ मिलाने से तीन combinations होते है जिनसे तीन नयेsecondary colour बनते है.:-
लाल + पीला = नारंगी.
पीला + नीला = हरा
लाल + नीला = बैंगनी.
colour wheel मॅ  secondary colours उन दो primary colours के बीच मॅ होतॅ है जिनके मेल से secondary colour बनते है.
(3) Tertiary Colours:- tertiary colours "in-between" रंग होते है.ये रंग एक primary colour और उस के समीप वाले एक् secondary colour  के मेल से बनते है.primaryया  secondary रंग के मात्रा या proportion मॅ फेर-बदल कर के हम अनेकानेक tertiary colour बना सकते है. reddish-orange,yellowish-orange,yellowish-green,bluish-green,reddish-violet,bluish-violet - मूल tertiary colours  होते है.

ये रंग न केवल आप्के जीवन मे अपनी छटा बिखेर कर उसे खूबसूरत बनाते हैं,बल्कि यही रंग आपके मन,मस्तिष्क ,भावनाओ और स्वभाव पर भी अपना असर दिखाते हैं.आपके पसन्दीदा रंग आपके व्यक्तित्व को भी दर्शाते हैं.इसी वजह से मनोविज्ञान मे रंगो का अपना एक अलग महत्व है.रंगो से मनुष्य की भावनाओ पर होने वाले प्रभावो के अनुसार रंगो को दो भागो मे विभाजित किया जा सकता है:-
(1)   Warm Colours:- ये रंग गर्माहट और उष्णता का आभास कराते हैं.ऐसे रंग उत्साह,और सुरक्षित होने की भावना के साथ  साथ गुस्सा और उत्तेजना भी बढा सकते हैं.लाल,पीले,नारंगी,और भूरे रंगो को हम warm colours  कह सकते हैं.ऐसे रंगो को हम सूरज,रौशनी दोपहर,और सांझ से जोड सकते हैं.warm colours  ही सबसे पहले हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
(2)   Cool Colours:- ये रंग इन्द्रियो को शान्त करने वाले,स्वास्थ्यवर्द्धक ,निश्चल,स्थिर,आरामदायक,और ठंडक प्रदान करने वाले होते हैं.इन रंगो को हम पानी,वायु,प्रकृति और पेड-पौधो के सन्दर्भ मे देख सकते हैं.अतः नीले,हरे,और बैंगनी रंग इस वर्ग के अंतर्गत आते हैं.कुछ लोग ग्रे या स्लेटी रंग को भी इसी श्रेणी मे रखते हैं.

इस वर्गीकरण को हम विस्तार से प्रत्येक रंग के सन्दर्भ मे देखते हैं. हर रंग अपने अन्दर कुछ विशेष्ताओँ को समेट कर रखता है जिनका सीधा असर मनुष्य पर पडता है.यह असर सकरात्मक और नकरात्मक दोनो प्रकार से हो सकता है.इसी वजह सेproduct packaging, logo designing और  interior designing के क्षेत्र मे इस्तेमाल किये गये रंगो पर खास ध्यान दिया  जाता है.

(1) लाल रंग:- लाल रंग physical reactions से जुडा है.यह रंग खतरा ,तीव्रता,और उत्तेजना का सूचक है.जहाँ एक ओर यह रंग साहस,शक्ति,और उत्साह बढाता है ,वही दूसरी ओर यह  defiance और  rebellion यानि आज्ञा का उल्लंघन करने की प्रवृति को भी बढाता है.अन्य रंगो की तुलना मे यह रंग सबसे पहले अपनी ओर ध्यान केन्द्रित करवाता है.इसी कारणवश लाल रंग विश्व स्तर पर  traffic lights मे इस्तेमाल किया जाता है.
(2) नीला रंग:- नीले रंग का असर मस्तिष्क पर पडता है.यह रंग आरामदायक, soothing और relaxing है.यह रंग बुरे सपनो और ख्यालो को दूर करता है और आपस मे परस्पर विश्वास,त्याग,और समर्पण की भावना को बढाता है.इसके साथ-साथ यह रंग बौद्धिक क्षमता और ध्यान एकाग्र करने की क्षमता को भी बढाता है.
(3)पीला रंग:- यह रंग हमारी भावनाओ से सीधा जुडा हुआ है.मनोविज्ञान मे इसे सबसे ताकतवर और tricky रंग माना जाता है.जहाँ पीले रंग का सही शेड सकरात्मकता,रचनात्मकता, confidence,स्वाभिमान,और मित्रता की भावना को बढाता है,वही इसी रंग का गलत शेड डर,अवसाद,और रोग-व्याधि का परिचायक होता है.
(4)हरा रंग:- यह रंग शारीरीक संतुलन और सामंजस्य का प्रतीक है.यह रंग शांति,प्यार,एकता बढाता है.माना जाता है कि इस रंग मे rejuvenating and healing qualities हैं जोकि आँखो को सुकून पहुँचाती है औत ताज़गी का अहसास दिलाती है.
(5)बैंगनी रंग:- इस रंग के मत मे एक striking contrast देखा जाता है.यह रंग शाही और जादुई माना जाता है जोकि सांसारिक सम्पन्नता ,धन,ऐश्वर्य,और विलासिता को सूचित करता है.परंतु इसके विपरित ,यह रंग पार्लौकिक ,धार्मिक,और आध्यात्मिक जागरूकता को बढाता है और इनसे सम्बन्धित विचारो और द्रष्टिकोण को मुखर करता है.

Colour Wheel मे पाये जाने वाले अनेक रंगो के अलावा भी कुछ रंग होते है. ये रंग हैं:- काला.सफेद और ग्रे या स्लेटी रंग.
(1) काला रंग:- यह रंग हर रंग को सोख लेता है,और कोइ भी रंग reflect नही करता.इसीलिये यह रंग हमें काला दिखता है.यह रंग  sophisticated और glamorous
माना जाता है.परंतु यही रंग मुसीबत,खतरा,अवसाद,डर,और भावनाओ के अभाव को भी दर्शाता है.
(2) सफेद रंग:- यह रंग हर रंग को reflect करता है इसीलिये  सभी रंग एकज़ुट हो कर सफेद  दिखाई पडते हैं.यह रंग साफ,स्वच्छ,निर्मल,शुद्धता और शांति का प्रतीक है.
(3) ग्रे/स्लेटी रंग:- यह रंग energy और confidence के अभाव,डर और अवसाद को सूचित करता है.

न्यायाधीश और वकील काला कोट क्यों पहनते हैं?

भारत में कहीं भी आप किसी अदालत में जाएंगे। आप को काले कोटों की बहुतायत दिखाई देगी। चाहे भीषण गर्मी क्यों न पड़ रही हो। चेहरे से पसीने की बूंदें झर-झर झर रही हों। कोट के नीचे कमीज बनियान तर हो चुके हों लेकिन वकील कोट में ही दिखाई देंगे। यही नहीं, अंदर कमीज का भी गले का बटन बंद होगा और ऊपर से बैंड्स या टाई और बंदी दिखाई देगी। कहीं ऐसा न हो कि गले के रास्ते कहीं से हवा घुस जाए। आप यदि सर्वोच्च न्यायालय या किसी हाईकोर्ट में पहुँच जाएंगे तो वहाँ कोट के ऊपर एक गाउन और डाला हुआ मिलेगा।  वकील नहीं सारे न्यायाधीश भी यही वर्दी पहने नजर आएंगे। आप के मन में यह प्रश्न भी उठेगा कि क्या वकीलों और न्यायाधीशों को गर्मी नहीं लगती?  मुझ से तो कई लोग पूछ भी लेते हैं कि क्या आप को गर्मी नहीं लगती? मैं सहज रूप से उन्हें कह भी देता हूँ कि नहीं लगती। सिर्फ सुबह जब पहनते हैं तब लगती है, फिर कुछ देर में अंदर की बनियान, कमीज सब पसीने से भीग जाते हैं, तब जरा भी हवा अंदर प्रवेश करती है तो सब ठण्डे भी हो जाते हैं। 
लेकिन मेरा यह उत्तर सहज मिथ्या से अधिक कुछ नहीं। मुझे गर्मी लगती है, कई बार तो लगातार पसीने के कारण त्वचा पर खुजली होने लगती है। जब एक से दूसरी अदालत जाने के लिए धूप में हो कर गुजरना होता है तो काला रंग उष्मा का अच्छा ग्राहक होने के कारण कोट से तेजी से गर्मी अंदर प्रवेश करती है और पसीना गर्म हो उठता है। तब ऐसा लगता है जैसे खोलते हुए पानी में घुस गए हों। तब तुरंत ही पंखे के नीचे शरण लेनी होती है। पाँच मिनट हवा लगने के बाद ही कुछ राहत मिलती है।  एक दो बरसात हो जाएँ तो हालत और बुरी होती है। तब बाहर भी ऊमस होती है और पसीना सूखना बंद हो जाता है। लगता है जैसे दिन भर खौलते पानी में बैठे रहे। उसी में दिन भर काम भी करना होता है। बरसात होते ही बिजली आने-जाने लगती है और पंखे का सहारा भी छिन जाता है। कभी कभी तो यह सोचने लगता हूँ कि मैं ने क्या सोच कर वकालत के प्रोफेशन का चुनाव  किया था।
र्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय में यह परेशानी कम है। वहाँ सभी न्यायालय वातानुकूलित हैं। न्यायाधीशों को वहाँ कोट पहनने में कोई परेशानी नहीं होती। जितनी देर वकील अंदर न्यायालय कक्ष में रहते हैं उन्हें भी परेशानी नहीं होती। परेशानी होती है तो जिला न्यायालय और उस से नीचे के न्यायालयों के वकीलों को। अब आप को समझ आ रहा होगा कि भारत में दीवानी न्यायालय गर्मी के मौसम में क्यों  बंद कर दिए जाते हैं और क्यों राजस्थान जैसे सब से गर्म प्रदेश में ढाई माह के लिए न्यायालयों का समय सुबह सात से साढ़े बारह का क्यों कर दिया जाता है? लेकिन वकीलों को इस से भी राहत नहीं मिलती उन के काम केवल दीवानी अदालतों में ही नहीं होते उन्हें फौजदारी, राजस्व और दूसरी अदालतों में भी जाना होता है। इन में से राजस्थान में राजस्व न्यायालय और अनेक न्यायाधिकरण 10 से 5 बजे तक काम करते हैं। परिणामतः वकीलों को लगभग दिन भर अदालतों में रहना होता है।

प सोच रहे होंगे कि आखिर जज और वकील कोट पहनते क्यों हैं? इस का मौजूदा कारण है कि यह कानून द्वारा निर्धारित न्यायाधीशों की वर्दी है। इसी तरह एडवोकेट एक्ट 1961 द्वारा वकीलों की भी वर्दी तय है। उन्हें काला कोट, पहनना आवश्यक है। कई बार काले कोट के इस अत्याचार के विरुद्ध वकीलों के बीच से आवाजें भी उठी हैं। इन आवाजों पर कई उच्च न्यायालयों ने इस तरह के निर्देश भी जारी किए हैं कि गर्मी के मौसम में कुछ माह तक वकील बिना कोट के न्यायालयों में पैरवी के लिए उपस्थित हो सकते हैं। लेकिन इस के बावजूद देखा यह गया है कि अधिकांश वकीलों ने इस छूट का लाभ नहीं उठाया है, और वे छूट के बावजूद काला कोट धारण करते रहते हैं।

आपकी कीमत Your Value

सिक्के हमेशा आवाज करते हैं मगर नोट हमेशा खामोश रहते हैं। इसलिए, जब आपकी कीमत बढ़े तो शांत रहिये। अपनी हैसियत का शोर मचाने का जिम्मा आपसे कम कीमत वालों के लिए है।